Wednesday, January 6, 2010

Nafrat Na kar, Bhool Ja Mujhko

राहें कुछ ऐसी उलझीं
के वो अजनबी अपनों से अपना लगने लगा
ना मिली हो मोहब्बत जिसको उम्र भर
आज एक अनदेखे का साथ मोहब्बत सा लगने लगा.

अपनेपन से, प्यार से,
लेकिन अब खौफ सा लगता है
उस अजनबी को खोने का अहसास भी
हर पल उसके करीब लाता है.

इन नजदीकियों से दूर जाना ही मजबूरी है मेरी
शायद तन्हाई में जीना ही तकदीर है मेरी
जाना ही तो था तुझे एक ना एक दिन
एक दिन पहले ही मैं कर गया इस मुश्किल को कम तेरी.

ये माना के ये खता मेरी है
पर नफरत ना करना मुझसे ऐ दिलनशीं
भुला ही देना मुझे अपनी ज़िन्दगी से
मुझे नफरत में भी याद करने की सज़ा खुद को ना देना ऐ हसीं.

तुझको नहीं दे सकता मैं सज़ा
ना दे सकता हूँ इलज़ाम मुझे छोड़ जाने का
ये खता मैं लेता हूँ अपने ही सर पे
मेरे ही दामन पे लगे दाग बेवफाई का, तुझे छोड़ जाने का.

भुला के मुझे जी ले तू अपनी ज़िन्दगी
खुशियों से भर ले दूर करले मुझसे अपनी ज़िन्दगी
बस नफरत ना करना तू मुझसे
बस प्यार ही प्यार से भरी हो तेरी ज़िन्दगी.

तेरे ही लिए दुआ करता है आज भी ये दीवाना
तेरे ही ख्यालों में जीता है आज भी ये दीवाना
तेरे दिल से दूर है भले ही
तेरी ही आग में जलाता रहेगा अपना दिल ये दीवाना.

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