हर लम्हा जो आँखें खुली रखीं तुझको याद किया,
नींद जो आई तो नजरों को मूँद कर भी ख्वाबों में तेरा ही दीदार किया
बेमतलब बेमौके जो अश्क बह निकला इन्ही आँखों से
हर उस अश्क को नज़रों ने तुझपर ही निसार किया.
इक बार जो ये दिल में हसरत जागे
की एक लम्हा ऐसा भी आये के तेरी आँखों में हमारा भी ख्याल आये
वो एक लम्हे को ही सही
हमारी याद से तेरे लबों पे इक मुस्कान आये.
बस इतनी सी भी हम हसरत करें
तो वो हमसे शिकवा करता है
उनसे हम एक लम्हा चाहें तो वो ये कहे
कि हमारा दिल उनसे इतनी उम्मीदें क्यूँ करता है?????
वो कहता है हमसे
कि क्या वो दे ना चुका हमको अपनी ज़िन्दगी से इतने लम्हें
कि उम्र भर उन लम्हों का हम उन्हें शुक्रिया करते रहे
और एक हम हैं जो अब भी उनसे एक और लम्हें कि उम्मीद किये जा रहे!!!!
ये हकीकत है के जितना उसने दिया मुझको
उतने पर भी हक़ ना बनता था मेरा
उतना तो बस दूर था
उस पर कब कोई हक़ था मेरा??
चल आज फिर से तेरी ही सही
ना कोई उम्मीद रखेंगे तुझसे
रखेंगे भी तो दिल में ही दफ्न रखेंगे
ना कहेंगे तुझसे.
तेरी यादों को ही संजोयेंगे
तेरी आवाज़ का रास्ता ना देखेंगे
अपनी आँखों में तेरा प्यार भर रखेंगे
तेरी आँखों में अपना अक्स ना ढूंढेंगे.