Thursday, April 29, 2010

Humse Na Kaho

हम कमज़ोर हैं
हमसे और लड़ने को ना कहो 
सहा होगा हमसे कहीं ज्यादा हर एक ने इस दुनिया में
कोई हमसे और सहने को ना कहो
होगी ज़िन्दगी खुदा कि नेमत ऐ दुनिया वालो
खुदा के लिए हमसे और जीने को ना कहो 

Monday, March 29, 2010

Tujhse Ab Na Koi Ummeedein Rakhenge

हर लम्हा जो आँखें खुली रखीं तुझको याद किया,
नींद जो आई तो नजरों को मूँद कर भी ख्वाबों में तेरा ही दीदार किया
बेमतलब बेमौके जो अश्क बह निकला इन्ही आँखों से
हर उस अश्क को नज़रों ने तुझपर ही निसार किया.

इक बार जो ये दिल में हसरत जागे
की एक लम्हा ऐसा भी आये के तेरी आँखों में हमारा भी ख्याल आये
वो एक लम्हे को ही सही
हमारी याद से तेरे लबों पे इक मुस्कान आये.

बस इतनी  सी भी हम हसरत करें
तो वो हमसे शिकवा करता है
उनसे हम एक लम्हा चाहें तो वो ये कहे
कि हमारा दिल उनसे इतनी उम्मीदें क्यूँ करता है?????

वो कहता है हमसे
कि क्या वो दे ना चुका हमको अपनी ज़िन्दगी से इतने लम्हें
कि उम्र भर उन लम्हों का हम उन्हें शुक्रिया करते रहे
और एक हम हैं जो अब भी उनसे एक और लम्हें कि उम्मीद किये जा  रहे!!!!

ये हकीकत है के जितना उसने दिया मुझको
उतने पर भी हक़ ना बनता था मेरा
उतना तो बस दूर था
उस पर कब कोई हक़ था मेरा??

चल आज फिर से तेरी ही सही
ना कोई उम्मीद रखेंगे तुझसे
रखेंगे भी तो दिल में ही दफ्न रखेंगे
ना कहेंगे तुझसे.

तेरी यादों को ही संजोयेंगे
तेरी आवाज़ का रास्ता ना देखेंगे
अपनी आँखों में तेरा प्यार भर रखेंगे
तेरी आँखों में अपना अक्स ना ढूंढेंगे.

Anjaana

कौन है ये इंसान जिससे मैं इतना अनजान हूँ
आईने में तो ये कुछ कुछ मुझसा नज़र आता है,
आसमान छूने के सपने संजोता था जो आँखों में
आज उन्ही सपनो को ज़मीन में दफनाता नज़र आता है.

Saturday, February 27, 2010

Chand Lamhen Aur

चन्द धागे बस जुड़ जाएँ
चन्द वादों को तोड़ने का दिल हो जाये
इक आवाज़ और इक बार बस सुन लूं
चन्द पन्ने इस किताब के ख़त्म हो जाएँ

फिर तो रुखसत है ही लेनी
ये चन्द लम्हें बस गुज़र जायें
उम्र भर तो तुने ग़म दी ए ज़िन्दगी
ये आखरी पल तो बस अब सुकून से गुज़र जायें......
चन्द लम्हें और ऐ दुनिया
बस फिर तुझसे कहीं दूर मैं चला
कहाँ का वो सफ़र होगा उससे भले अनजान हूँ मैं
तेरी इस दोज़ख को छोड़ मैं चला.

Wednesday, January 13, 2010

Ghar Aana Tera

दरो दीवार से आ रही है खुश्बू तेरी
बिस्तर तकिये में बस गयी है महक तेरी
प्यारा सा लगता है मुझको अब ये मकान मेरा
बना गया इस मकान को घर इक बार आना तेरा.

तकिये पे तेरी जुल्फों के टुकड़े
गुसलखाने में तेरी छुटी हुई एक कान की बाली
जिसे छुआ था तुने अपने होठों से
बड़ी सहेज के रखी है वो चाय की अनधुई प्याली.

अब तो हर दस्तक पे चेहरा खिल जाता है
तेरे आने की आरज़ू हकीकत में बदलता नज़र आता है
कोई भी हो दरवाज़े पे,
हर इक चेहरे में तेरा ही चेहरा नज़र आता है.

तेरे जाने की घडी से ही शुरू हो गयीं इंतज़ार की घड़ियाँ
तेरे बिना हर इक पल इक उम्र सा लगता है
वैसे तो यहाँ छाये रहते हैं वीराने के मंज़र
तेरे आने से मुझे मेरा घर घर सा नज़र आता है.

Wednesday, January 6, 2010

Tujhse Pehle Tere Baad

तुझसे मिलने से पहले भी तो ज़िन्दगी तन्हा थी मेरी
फिर क्यूँ तुझसे बिछड़ के ये तन्हाई और गहरी लगती है?
चन्द दिनों का ही तो साथ था हमारा
फिर क्यूँ तेरे साथ बिताई घड़ियाँ इक उम्र सी लगतीं हैं?