Sunday, December 6, 2009

Ajnabi

तू मेरा कोई भी नहीं है
उम्मीद भी तुझसे कोई नहीं
कल तक ही तो तू अजनबी था
आज भी तू हमसफ़र नहीं.

फिर क्यूँ आँखें बिछा रखी हैं
क्यूँ है इस बेसब्री से तेरा इंतज़ार
नहीं मैं तुझसे प्यार नहीं करता
फिर क्यूँ है तेरी देरी से ये दिल बेकरार?

क्या सचमुच तू मेरा कोई नहीं है
क्या सचमुच ही तू अजनबी है?
ये क्या हो रहा है मुझको ऐ दिल
की तू पूछता है की क्यूँ तू मेरा हमसफ़र नहीं है?

ये ख्वाब भी टूटेगा
फिर एक बार तू गुम होगा आँखों से मेरी
दिल फिर भी ढूँढेगा तुझको
आखिर क्यूँ, की जब जानता है हमेशा की तू आया ही था ज़िन्दगी से जाने को मेरी?

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