Sunday, December 6, 2009

Zinda

दर्द अब बर्दाश्त से बाहर है
ना ही बची अब दिलो दिमाग में ताकत है
एक आसरा तेरा था मौत, तू मिलेगी मुझसे
तुझे भी आज छीन लिया उस ज़ालिम ने मुझसे.

एक वादे ने बाँधा कुछ ऐसे बंधन में मुझको
रोज़ ही मरता रहूँ मैं लेकिन
मर मर के ही जीना पड़ेगा
दिल बहाता रहे खून के आंसूं, पीना पड़ेगा.

तेरा नहीं है कसूर मैं जानता हूँ
तू बस मुझे जिंदा देखना चाहता है
पर ये ना समझा तू की इस ज़िन्दगी की लाश उठाने की अब ताकत नहीं है मुझमें
और एक तू है, की मेरा सहारा बनने की हिम्मत नहीं है तुझमें.

नहीं निभा सकता है तू साथ मेरा
लेकिन ये चाहता है की तेरे बिना मैं निभाऊं ज़िन्दगी का साथ
शर्त ये तेरी जिंदा तो रख जाएगी मुझे
फिर तुझे क्या की ये ज़िन्दगी कितना सताएगी मुझे.

वादा किया है तुझसे तो मैं निभाऊंगा
घुटते हुए ही गर देखना चाहती है तू मुझको तो चल दिखाऊंगा
लोग प्यार की खातिर मर मिटते हैं
मैं तुझे जिंदा रहके बताऊंगा.

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