Thursday, December 3, 2009

Pal

तेरे साथ गुज़ारे थे तन्हाई में कुछ पल,
बारिश में भीगे हुए गुज़ारे थे कुछ पल,
कुछ पल साथ गुज़ारे थे तेरे घर के बगीचे में,
मेरे घर की छत पे गुज़ारे थे कुछ पल.
वो सारे पल आज मुझसे कुछ पूछते हैं,
मेरे साथ तू नहीं, इसकी वजह पूछते हैं.
कुछ मेरे हालात हैं, कुछ तेरी मजबूरियां,
पर ये पल तो नहीं समझते,
के अब न मिटेंगी ये दूरियां.
इनको अब भी उम्मीद है,
कि हम फिर पास होंगे,
वो बारिश, ओ बगीचा, वो छत और ये पल,
हम सब फिर से साथ होंगे.
कह दो तुम इनसे, कि अब तुम नहीं आओगी,
जितना जा पाओ तुम इनसे, दूर चली जाओगी.
तुम ही समझा दो इनको,
नहीं मानते ये मेरी बातें हैं,
रह रहकर यादों में आकर,
ये पल मुझे तड़पाते हैं.
इनसे बहककर कभी मैं सोचता हूँ,
कि फिर तुम मेरे पास आ जाओगी,
ये पल फिर से जी उठेंगे,
जो तुम फिर से मेरी हो जाओगी.
फिर संभल जाता हूँ मैं इस डर से,
कि लड़खड़ा जाऊँगा,
समझाता हूँ इन पलों को,
इस तरह मैं जज़्बात में बह जाऊँगा,
गिरगिराता हूँ इन पलों से,
कि ये ख्यालों में न आयें,
दिलाके पुराने दिनों की याद,
मुझे ये और कमज़ोर ना बनाएं.
पर जितना मैं इनको दूर भगाता हूँ,
उतना ये मुझे तड़पाते हैं,
आ आकर याद मुझे,
मेरे दिल को जलाते हैं.
ये पल अब मेरे साथ ही ये दुनिया छोड़ेंगे,
दफ्न होकर मेरे साथ मुझसे रिश्ता तोड़ेंगे.
हमारी कब्र पे तेरा नाम तो ना होगा लेकिन,
तेरे फूलों का इंतज़ार हम हमेशा करेंगे....
तेरे फूलों का इंतज़ार हम हमेशा करेंगे.....

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