किश्तों में आती है जो मौत
उसका दर्द कोई ज़रा हमसे पूछिये,
मर मार्के जीना जी जी के मरना,
आंसुओं को छिपाने का दर्द कोई हमसे पूछिए.
चेहरे पर जब हमारी शिकन देखते हैं
वो हाले दिल हमारा पूछते हैं,
जब तक कर पायें हम हाले दिल बयान
तब तक वो हमारे पास कहाँ रुकते हैं.
सुनी गलियों में अकेले भटकना काम है हमारा
तन्हाई का मतलब ज़रा कोई हमसे पूछिए,
अब तो उनके साथ भी हम खुद को तनहा पाते हैं,
ऐसी तन्हाई का आलम ज़रा कोई हमसे पूछिए.
हम करते रहे खुद को ख़ाक उनकी राहों पे,
वो हमारी ख़ाक से भी आँखें चुराते चले गए,
उनकी हसरत में तो फूल खिलाये थे दिल में,
वो हमारे दिल में कांटे चुभाते चले गए.
सबकुछ है पर कुछ भी नहीं,
बेबसी है क्या कोई हमसे पूछिए,
वो आँखों के सामने हैं पर सदियों के फासले हैं,
फासले हैं क्या कोई हमसे पूछिए.
Thursday, December 3, 2009
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