खिल गए वो रुख के फूल
के पूछा उसने हाल हमारा.
जो गुज़ारे थे उसकी याद में ज़माने
अश्कों को गंवाने में
कहीं गुम हुए वो अश्क
आज उसके एक दीदार के बहाने में.
रौनक जो उसने देखी चेहरे पे हमारी
हमारी तन्हाई का फ़साना बेकार हुआ
एक मुस्कान से उसको हुआ गुमान हमारी खुशहाली का
खुदा से उसको माँगा हर लम्हा बेकार हुआ.
चल दिया फिर एक बार हमको वो राहों में छोड़कर
फिर एकबार हमीं पर बेवफाई का इल्ज़ाम लगा
उसके जाते ही भर आयीं फिर से एक बार निगाहें
अश्कों ने हमको आज फिर एक बार ठगा.
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