बातें करके उससे दिल बहलने सा लगता है
नाउम्मीदी में भी क्यूँ एक दिया जलता सा लगता है
मैं जानता हूँ की ये भी सपना टूट जायेगा मगर
क्यूँ ये अजनबी एक दोस्त सा नज़र आता है.
दोस्ती से प्यार से रिश्तों से ममता से
हो गयी है नफरत मुझको
नहीं चाहता नए धागों में बंधना फिर भी
क्यों ये अजनबी दोस्त प्यारा सा नज़र आता है.
सपनों को टूटते इतना देखा है की अब
सपने देखने से भी डर लगता है
रोका है खुद को इतना फिर भी
क्यूँ इस नए दोस्त में एक सुन्दर सपना सा नज़र आता है.
ए दोस्त शुक्रिया तेरी दोस्ती का
तू नहीं जानता के कितने इसके मायने हैं
लेकिन दिखा ना मुझको फिर से खूबसूरत ज़िन्दगी के ख्वाब
मुझे ये हसीं सपना बिखरता सा नज़र आता है.
अबके बिखरा तो फिर जुड़ ना पाऊंगा
करता है तू ना जाने का वादा मैं जानता हूँ लेकिन
तुझसे ज्यादा मुझे मेरी बदकिस्मती पे भरोसा है
तू मुझे मेरी ज़िन्दगी का आखरी सौगात सा नज़र आता है.
Saturday, December 5, 2009
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